397 वर्ष पुरातन वडाला विट्ठल मंदिर में 19 जुलाई 2013, आषाढ एकादशी के पावन अवसर पर सदगुरू श्री अनिरूद्ध व नंदाई ने श्री विट्टल और रखुमाई का महाभिषेक व पूजन किया। यह मंदिर प्रति पंढरपुर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंगल दिवस पर मंदिर के अधिकारियों ने परम पूज्य बापू एवं परम पूज्य नंदाई को उत्सव में सम्मिलित होने व पवित्रता बढाने हेतु आमंत्रित किया था।
परम पूज्य बापू एवं परम पूज्य नंदाई अपने घर से मोठी आई (महिषासुरमर्दिनी) का पूजन करने के पश्चात विठ्ठल मंदिर में महाभिषेक के लिए निकले. महाभिषेक प्रातः 4 को शुरू होना था, इतने सुबह के समय भी बापू समय से पूर्व ही पहुँच गए। बापू का भावभीना स्वागत मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री शशिकांत ग नायक, कोषागार-श्री उदय स दिघे व सचिव-श्री प्रशांत अ म्हात्रे इन्होंने किया।
मंदिर पदाधिकारियों के साथ एक संक्षिप्त मिटींग के बाद परम पूज्य बापू, करोडों के प्रिय आराध्य श्री विट्टल व रखुमाई के पूजन के लिए बढे। श्री विठ्ठल व रखुमाई का महाभिषेक बापू व आई ने किया। पूजन पश्चात, मंदिर पदाधिकारियों के अनुरोध का मान रखते हुए बापू ने आतुरता से प्रतीक्षा करते हुए भक्तों को संबोधित किया।
संबोधन में बापू ने भक्ति की महत्ता बताते हुए सामान्य मानव कैसे सरल संभव मार्ग से भक्ति कर सकता है यह बताया। उन्होनें मंदिर की महत्ता व इतिहास के बारे में भी बताया जिससे अधिकांश जन अनभिज्ञ थे। उन्होनें बताया कि मंदिर की मूर्ति को स्वयं संत तुकाराम यहाँ लाए थे। बापू ने उल्लेख किया कि इस मंदिर के देवता को केवल मूर्ति न मानते हुए श्री विठ्ठल व रखुमाई स्वयं यहाँ है यह मानना चाहिए।
बापू ने पुरानी यादों में खोते हुए, अपने व मंदिर के पुराने व गहरे संबध को उजागर किया। जब वे 7 वर्ष के थे तब बापू की परनानी व नानी उन्हें सर्व प्रथम इस मंदिर नें लायीं थी और इसी मंदिर में उनकी परनानी ने उन्हें "बापू" इस नाम से पहली बार पुकारा था।
संबोधन पश्चात, मंदिर पदाधिकारियों ने श़ॉल व स्मृति-चिन्ह प्रदान कर बापू को सम्मानित किया. अंततः बापू व नंदाई ने श्री विट्टल व रखुमाई की आरती की।
बापू के आने से मंदिर पदाधिकारियों ने खुद को धन्य महसूस किया. सभी सहमत थे कि बापू की उपस्थिति में पूरा कार्यक्रम अत्यंत पवित्रता एवं सुनियोजित ढंग से संपन्न हुआ।
प्रातः 6 15 के करीब बापू ने मंदिर से विदा ली।
परम पूज्य बापू एवं परम पूज्य नंदाई अपने घर से मोठी आई (महिषासुरमर्दिनी) का पूजन करने के पश्चात विठ्ठल मंदिर में महाभिषेक के लिए निकले. महाभिषेक प्रातः 4 को शुरू होना था, इतने सुबह के समय भी बापू समय से पूर्व ही पहुँच गए। बापू का भावभीना स्वागत मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री शशिकांत ग नायक, कोषागार-श्री उदय स दिघे व सचिव-श्री प्रशांत अ म्हात्रे इन्होंने किया।
मंदिर पदाधिकारियों के साथ एक संक्षिप्त मिटींग के बाद परम पूज्य बापू, करोडों के प्रिय आराध्य श्री विट्टल व रखुमाई के पूजन के लिए बढे। श्री विठ्ठल व रखुमाई का महाभिषेक बापू व आई ने किया। पूजन पश्चात, मंदिर पदाधिकारियों के अनुरोध का मान रखते हुए बापू ने आतुरता से प्रतीक्षा करते हुए भक्तों को संबोधित किया।
संबोधन में बापू ने भक्ति की महत्ता बताते हुए सामान्य मानव कैसे सरल संभव मार्ग से भक्ति कर सकता है यह बताया। उन्होनें मंदिर की महत्ता व इतिहास के बारे में भी बताया जिससे अधिकांश जन अनभिज्ञ थे। उन्होनें बताया कि मंदिर की मूर्ति को स्वयं संत तुकाराम यहाँ लाए थे। बापू ने उल्लेख किया कि इस मंदिर के देवता को केवल मूर्ति न मानते हुए श्री विठ्ठल व रखुमाई स्वयं यहाँ है यह मानना चाहिए।
बापू ने पुरानी यादों में खोते हुए, अपने व मंदिर के पुराने व गहरे संबध को उजागर किया। जब वे 7 वर्ष के थे तब बापू की परनानी व नानी उन्हें सर्व प्रथम इस मंदिर नें लायीं थी और इसी मंदिर में उनकी परनानी ने उन्हें "बापू" इस नाम से पहली बार पुकारा था।
संबोधन पश्चात, मंदिर पदाधिकारियों ने श़ॉल व स्मृति-चिन्ह प्रदान कर बापू को सम्मानित किया. अंततः बापू व नंदाई ने श्री विट्टल व रखुमाई की आरती की।
बापू के आने से मंदिर पदाधिकारियों ने खुद को धन्य महसूस किया. सभी सहमत थे कि बापू की उपस्थिति में पूरा कार्यक्रम अत्यंत पवित्रता एवं सुनियोजित ढंग से संपन्न हुआ।
प्रातः 6 15 के करीब बापू ने मंदिर से विदा ली।
1 comments:
अनोखी पोस्ट! मंदिर एवं बापू दोनो के बारे में नई जानकारी मिली,़
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